दिल्ली की मेट्रो से पीएचडी का सफर !

एक छोटे से जिले में रहने वाली लड़की की कहानी जिसने अपने स्कूल के दिनों में नहीं सोचा था, की वो एक बड़े संस्थान से अपनी उच्च स्तर की पढाई कर पायेगी। उस लड़की के संघर्ष से सफलता तक की कहानी उसी की कलम से -

मैं प्रीति पटेरिया, और मैं दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट (पीएचडी) कर रही हूं। मेरा पीएचडी का सफर यह है - जैसे कि कहते हैं ना, कभी-कभी किस्मत आपको वहाँ ले आती है, जहाँ आपने कभी जाने का नहीं सोचा होता।

मैंने भी कभी नहीं सोचा था, कि मैं पीएचडी करूंगी, क्योंकि एमटेक के बाद मैंने निर्णय किया था कि, अब मैं नौकरी करूंगी, लेकिन यह अच्छा हुआ कि मैंने एमटेक के बाद भी तीन साल तक अन्य प्रोजेक्ट्स में रिसर्च जॉब की, और तब मुझे लगा कि मैं क्यों न पीएचडी के लिए आवेदन करूं। जब मैंने आवेदन किया, तो मुझे वही एरिया मिला जिसमें मुझे अपना पीएचडी करना था, और वह एरिया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस था।

लगभग डेढ़ साल हो गए हैं, पीएचडी में एडमिशन लिए, और मैंने असली संघर्ष देखा है कि समय को कैसे मैनेज करना है, क्योंकि दिल्ली में समय की महत्ता है, और मैं रोज़ इंडस्ट्री के रिसर्च वर्क में भी सहयोग देती हूँ और डेटा कलेक्शन करने के लिए मेहनत भी करती हूं, याने मेट्रो से लगभग 2 घंटे का सफर करके औद्योगिक क्षेत्र में काम करती हूं।

8 घंटों से भी अधिक काम और यात्रा करके मैं अपने हॉस्टल लौटती हूं। मुझे यह भी लगता है कि पीएचडी आपको मानसिक रूप से मजबूत बनाता है, कई बार मानसिक स्थिति टूट जाती है, क्योंकि विषय को समझना और काम करने में बहुत समय लगता है, फिर पेपर पब्लिकेशन, उसके लिए भी कई पैरामीटर्स है, तो आपको बहुत समय लगता है।

लेकिन आपको कभी-कभी खुशी भी होती है, क्योंकि आप उसमें अपना 100% देते हैं। मैं कोई लेखक नहीं हूं, लेकिन धन्यवाद eSkill Bharat साक्षात्कार के लिए, जिससे मेरी कहानी यहाँ आ सकी। यहाँ कोई भी अपनी बात रख सकता है।

मेरा यह सफर कठिनाइयों से भरपूर और सीखने के अवसर प्रदान करेगा। और मेरी उम्मीद है, कि यह सफर मुझे वह सफलता देगा जो मैंने हमेशा से अपने जीवन में चाही थी। मैं यही कहूँगी कि हर दिन कुछ प्रोडक्टिव करना अत्यंत महत्वपूर्ण है, और ऐसा करने से एक दिन बहुत सारी चीजें उत्पादक हो जाती हैं, और आपको इसका अहसास तक नहीं होता कि आपने यह मेहनत की है।

"भगवान श्री कृष्ण हमेशा कहते हैं कि कर्म करो, फल की चिंता मत करो। क्योंकि फल देने वाला वह खुद है, कर्म अच्छे होंगे तो बुरा समय हँसते-हँसते बीत जाता है।"

वैसे, मैंने कई साल तक स्ट्रगल और मानसिक रूप से भी होने वाली कठिनाइयाँ देखी है, लेकिन जब मैं देखती हूं कि आख़िरकार मेरे नाम के आगे "डॉक्टर" लिखा जाएगा, तो मैं सभी बातों को भूलकर काम करती हूं। क्योंकि एक लड़की पर उसकी शादी का भी बहुत दबाव होता है, और उस एक लड़की के लिए काफी मुश्किल होता है, यह सबको झेलना। पर अगर हम खुद अपने पेरो पर नहीं खड़े होंगे, तो कोई और क्या साथ देगा।

इसलिए मेहनत ही एक सिर्फ रास्ता है, ऊपरवाला सब कुछ देगा, सही समय पर। और मेहनत आपके हाथ में है, तो 100 प्रतिशत देना आवश्यक है। - Skill Blogs 8085519324



Dr Ajay Kumar Choubey

Startup & Innovation Mentor